अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। हाल ही में व्हाइट हाउस के रोज़ गार्डन से की गई घोषणा में उन्होंने भारत समेत कई देशों पर नए पारस्परिक शुल्क (Reciprocal Tariffs) लगाने की घोषणा की। इसमें भारत पर 26% टैरिफ लगाया गया है, जो विशेष रूप से कपड़ा (Textiles), केमिकल्स (Chemicals) और मशीनरी (Machinery) जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा।
यह कदम केवल भारत ही नहीं बल्कि चीन, वियतनाम और अन्य एशियाई देशों के लिए भी चुनौती बनकर आया है। हालांकि, भारत के लिए यह स्थिति संकट और अवसर दोनों लेकर आई है।

ट्रंप के पारस्परिक शुल्क की खास बातें
अमेरिका ने भारत पर 26% टैरिफ लगाया है।
ट्रंप ने कहा कि अमेरिका अब उन देशों पर आधा शुल्क लगाएगा जितना वे अमेरिका पर लगाते हैं।
भारत वर्तमान में अमेरिकी आयात पर औसतन 52% टैरिफ लगाता है।
चीन और वियतनाम पर और भी कड़े शुल्क लगाए गए हैं।
यह घोषणा उस समय आई है जब भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत चल रही है।
भारत के निर्यात पर संभावित असर
भारत का अमेरिका को निर्यात लगभग 90 अरब डॉलर (2024 के आंकड़े अनुसार) है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा टेक्सटाइल्स, फार्मा, केमिकल्स और मशीनरी का है।
टेक्सटाइल सेक्टर – अमेरिकी आयातकों के लिए भारतीय कपड़े अब 26% महंगे हो जाएंगे, जिससे मांग कम हो सकती है।
केमिकल्स और फार्मा – कीमतें बढ़ने से प्रतिस्पर्धा कठिन होगी, खासकर वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों से।
मशीनरी और उपकरण – भारतीय निर्यातकों को वैकल्पिक बाजार ढूंढने की जरूरत होगी।
लेकिन, यहाँ एक उल्टा फायदा भी हो सकता है। चूँकि चीन और वियतनाम पर और भी ज्यादा शुल्क लगाए गए हैं, इसलिए कई अमेरिकी कंपनियां सस्ता विकल्प ढूंढते हुए भारत की ओर रुख कर सकती हैं।
द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) और भारत की रणनीति
भारत और अमेरिका दोनों देशों के बीच बिलेट्रल ट्रेड एग्रीमेंट (BTA) पर बातचीत चल रही है।
लक्ष्य है कि 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाया जाए।
अमेरिका चाहता है कि भारत अपने टैरिफ और नॉन-टैरिफ बाधाओं (जैसे आयात नियम, गुणवत्ता मानक) को कम करे।
भारत की सबसे बड़ी चुनौती कृषि क्षेत्र है, जहाँ किसानों के हितों की रक्षा करना आवश्यक है।
भारत फिलहाल यह रणनीति अपना रहा है:
- व्यापार मंत्रालय ने उद्योग जगत और निर्यातकों से सुझाव मांगे हैं।
- कृषि और MSME सेक्टर को बचाने के लिए सुरक्षा शर्तों (Safeguards) पर विचार हो रहा है।
- नई अवसरों की तलाश – अमेरिका में चीन और वियतनाम के कमजोर होने से भारतीय निर्यातकों को अतिरिक्त बाजार मिल सकता है।
वैश्विक परिदृश्य और भारत की स्थिति
आज के दौर में वैश्विक व्यापार युद्ध (Global Trade War) नई ऊँचाई पर पहुँच चुका है।
अमेरिका और चीन की जंग पहले से ही सप्लाई चेन को प्रभावित कर रही है।
रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बीच भारत ने रूसी तेल खरीदकर ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की, जिससे अमेरिका और पश्चिम नाराज़ भी हुए।
अब ट्रंप के नए टैरिफ से भारत पर अतिरिक्त दबाव बनेगा, लेकिन साथ ही यह भारत को एशियाई और यूरोपीय बाजारों में नई व्यापारिक साझेदारी बनाने का मौका भी देगा।
भारत के लिए अवसर कहाँ हैं?
- चीन और वियतनाम पर ज्यादा टैरिफ – इससे अमेरिकी आयातक भारत की ओर रुख कर सकते हैं।
- फार्मा सेक्टर – भारत की जेनेरिक दवाइयाँ अब भी प्रतिस्पर्धी रह सकती हैं।
- आईटी और सेवाएं – टैरिफ केवल वस्तुओं पर है, सेवाओं के क्षेत्र में भारत को लाभ मिल सकता है।
- कृषि उत्पाद – यदि समझौते में भारत कुछ छूट हासिल कर ले, तो अमेरिकी बाजार में भारतीय कृषि उत्पादों की मांग बढ़ सकती है।

चुनौतियाँ भी कम नहीं
निर्यात महंगा होना – भारतीय सामान की लागत बढ़ेगी।
MSME सेक्टर पर दबाव – छोटे और मध्यम निर्यातकों को बड़ा नुकसान हो सकता है।
किसानों की चिंता – अगर भारत अमेरिका के दबाव में कृषि आयात पर टैरिफ कम करता है, तो स्थानीय किसानों को नुकसान होगा।
आत्मनिर्भर भारत पर असर – अमेरिका की मांगें अगर मान ली जाती हैं तो “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” की नीतियों पर असर पड़ सकता है।
भारत की राह क्या होनी चाहिए?
- बातचीत को संतुलित रखना – भारत को अपने कृषि और MSME सेक्टर की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
- नए बाजार तलाशना – अमेरिका के अलावा यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका पर ध्यान बढ़ाना चाहिए।
- वैल्यू एडिशन पर फोकस – सस्ते उत्पादों के बजाय उच्च गुणवत्ता वाले सामान निर्यात करना।
- RCEP और अन्य समझौतों पर विचार – एशियाई देशों के साथ व्यापारिक गठजोड़ से अमेरिका के दबाव को संतुलित किया जा सकता है।
निष्कर्ष
ट्रंप के नए 26% पारस्परिक टैरिफ ने भारत के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं, लेकिन यह भारत को नए अवसरों की तलाश का मौका भी देता है।
भारत को अब दोहरी रणनीति अपनानी होगी –
घरेलू उद्योग और किसानों की रक्षा करना।
साथ ही अमेरिका और अन्य देशों के साथ संतुलित व्यापार नीति बनाना।
यदि भारत यह संतुलन साध लेता है, तो आने वाले वर्षों में न केवल वह अमेरिकी दबाव से उबर पाएगा, बल्कि वैश्विक व्यापार में और मजबूत भूमिका निभाएगा।
