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🕒 प्रकाशित: 21 अगस्त 2025 | लेखक: Debayan Roy
मध्य प्रदेश की सिविल जज (जूनियर डिवीजन) अदिति कुमार शर्मा ने हाल ही में अपना इस्तीफ़ा वापस ले लिया है और पुनः न्यायिक सेवा में शामिल हो गई हैं। यह फैसला उन्होंने उस समय लिया जब हाई कोर्ट की आंतरिक समिति ने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनकी शिकायतें उचित मंच पर सुनी जाएंगी और उनके अधिकार प्रभावित नहीं होंगे।

📌 इस्तीफ़े की पृष्ठभूमि
अदिति शर्मा ने राजेश कुमार गुप्ता नामक एक न्यायिक अधिकारी पर उत्पीड़न (harassment) के गंभीर आरोप लगाए थे। विवाद तब और बढ़ गया जब गुप्ता को हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया।
28 जुलाई 2025 को केंद्र सरकार ने गुप्ता की नियुक्ति को मंज़ूरी दी और 30 जुलाई को उन्होंने शपथ भी ले ली। इसके तुरंत बाद ही शर्मा ने अपने इस्तीफ़े का ऐलान करते हुए इसे “संस्थान के भीतर न्याय खो जाने के विरोध में उठाया गया कदम” बताया।
उनकी चिट्ठी में लिखा था:
“मैं न्याय से अपना विश्वास नहीं खो रही, बल्कि न्याय ने स्वयं अपनी राह खो दी है।”

⚖️ विरोध और शिकायतें
शर्मा ने इस्तीफ़ा देने से पहले राष्ट्रपति को पत्र लिखा।
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम को भी उन्होंने आग्रह किया कि “जिस व्यक्ति पर गंभीर आरोप हैं, उसे पदोन्नति देना न्याय के साथ खिलवाड़ है।”
शर्मा के अलावा, दो अन्य न्यायिक अधिकारियों ने भी गुप्ता के आचरण पर शिकायतें दर्ज की थीं।
इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने जुलाई 2025 की शुरुआत में गुप्ता के नाम की सिफारिश की, और केंद्र ने इसे मंज़ूरी दे दी।
🏛️ आंतरिक समिति का हस्तक्षेप
11 अगस्त 2025 को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित दो सदस्यीय समिति ने अदिति शर्मा की शिकायत सुनी।
समिति ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनकी आपत्तियों को सम्मानजनक और कानूनी तरीके से सुना जाएगा।
साथ ही उन्हें यह भी भरोसा दिलाया गया कि उनके पास प्रशासनिक अथॉरिटी या न्यायिक मंच पर जाने का अधिकार सुरक्षित रहेगा।
इसी सलाह के बाद शर्मा ने अपना इस्तीफ़ा वापस लिया और 20 अगस्त 2025 को सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर फिर से कार्यभार संभाल लिया।

🌍 इस्तीफ़ा वापस लेने का महत्व
शर्मा का यह कदम सिर्फ व्यक्तिगत निर्णय नहीं माना जा रहा, बल्कि इसे न्यायपालिका के भीतर जवाबदेही और पारदर्शिता की दिशा में एक साहसिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
यह घटना न्यायिक प्रणाली में “संवेदनशील मुद्दों को अनदेखा न करने” की सीख देती है।
महिला न्यायिक अधिकारियों के लिए यह एक मजबूत मिसाल है कि शिकायतों को दबाने के बजाय उचित मंच पर आवाज़ उठाई जानी चाहिए।
📢 प्रतिक्रियाएँ
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला न्यायपालिका में नैतिकता और पारदर्शिता पर नई बहस को जन्म देगा।
सिविल सोसाइटी और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी शर्मा के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि “उनका यह कदम न्यायपालिका में विश्वास को मज़बूत करेगा।”

✅ निष्कर्ष
मध्य प्रदेश की जज अदिति कुमार शर्मा का इस्तीफ़ा वापस लेना और पुनः सेवा में लौटना इस बात का संकेत है कि न्यायपालिका में अब भी न्याय की उम्मीद कायम है।
उनका यह निर्णय एक ओर व्यक्तिगत साहस की कहानी है तो दूसरी ओर संस्थागत सुधार की ज़रूरत को भी उजागर करता है।
