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कौन हैं डॉ. प्रिया?
प्रिया, भारत की पहली किन्नर डॉक्टरनी, एक ऐसा नाम है जो न सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र में पहचान बना चुकी हैं, बल्कि सामाजिक सेवा में भी मिसाल कायम कर रही हैं। जन्म से ही किन्नर होने के बावजूद, उनके परिवार ने उनका साथ दिया, लेकिन समाज की मानसिकता ने उन्हें बार-बार तोड़ने की कोशिश की।

📚 शिक्षा और संघर्ष
प्रिया के लिए शिक्षा का रास्ता आसान नहीं था। स्कूल में उन्हें तिरस्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। दिन-रात पढ़ाई करके उन्होंने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और MBBS की डिग्री हासिल की। वो बताती हैं कि –
“मेरे सपनों से बड़ा कोई समाज का डर नहीं था। डॉक्टर बनना ही मेरी पहचान बनानी थी।”
💰 70% आय अनाथालय को दान
डॉ. प्रिया आज एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत हैं, और हैरानी की बात ये है कि वो अपनी आय का 70% हिस्सा देशभर के अनाथालयों में दान करती हैं। उनका मानना है कि –
“जो बच्चे अपने परिवार से वंचित हैं, उनका सहारा बनना ही असली मानवता है।”
🏅 सम्मान और पहचान
प्रिया को कई राष्ट्रीय और सामाजिक मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें प्रमुख हैं:
“नारी शक्ति सम्मान”
“सेवा रत्न पुरस्कार”
“LGBTQ+ Changemaker Award”
🧠 समाज को संदेश
डॉ. प्रिया अपने जीवन से यह साबित करती हैं कि यदि परिवार का साथ हो और स्वयं पर विश्वास बना रहे, तो कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकता है। वो आज किन्नर समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।

🙏 “चक्का” नहीं, इंसान कहो – सोच बदलो, समाज बदलेगा
आज भी हमारे समाज में किन्नर समुदाय को अपमानजनक शब्दों जैसे “चक्का” कहकर बुलाया जाता है। यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि उनके आत्मसम्मान पर गहरी चोट है। जिस समाज में हम बराबरी और समानता की बात करते हैं, वहीं कुछ लोग अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते एक पूरे समुदाय का मजाक बनाते हैं।
किन्नर भी हमारी तरह इंसान हैं – उनके भी सपने हैं, भावनाएं हैं, और जीने का अधिकार है। उनमें से कई लोग शिक्षा, कला, चिकित्सा और सामाजिक सेवा में अनुकरणीय योगदान दे रहे हैं। फिर भी, केवल उनकी लिंग पहचान के कारण उन्हें नीचा दिखाना घोर अन्याय है।
हमें समझना होगा कि सम्मान सभी का अधिकार है, चाहे उनका लिंग, जाति या पहचान कुछ भी हो।
किसी को “चक्का” कहना न केवल अशिष्टता है, बल्कि यह हमारी अपनी सोच की गरीबी को दर्शाता है।
अब समय आ गया है कि हम भाषा और व्यवहार दोनों में बदलाव लाएं।
इंसान को इंसान की तरह देखना सीखें – यही असली मानवता है।
💔 संघर्ष की कहानी – डॉ. प्रिया का जीवन केरल से डॉक्टर बनने तक

डॉ. प्रिया का जन्म केरल के एक छोटे से कस्बे में हुआ था। बचपन से ही वह खुद को दूसरों से अलग महसूस करती थीं, लेकिन परिवार ने उनका साथ दिया। जब उन्होंने किन्नर होने की पहचान को स्वीकार किया, तो समाज की तिरछी नजरों और बातों ने उन्हें बार-बार तोड़ने की कोशिश की।
पढ़ाई के दौरान उन्हें कॉलेज में तानों, उपहास और भेदभाव का सामना करना पड़ा। सहपाठी उनका मज़ाक उड़ाते थे, शिक्षक उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे, और कई बार उन्हें अलग थलग कर दिया जाता था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
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प्रिया कहती हैं –
“कभी-कभी मेरी किताबें चुपचाप भीग जाती थीं – आंसुओं से, लेकिन मैंने सपनों को सूखने नहीं दिया।”
केरल विश्वविद्यालय से मेडिकल डिग्री हासिल करना उनके जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। वो बताती हैं कि सपनों को पहचान चाहिए, दया नहीं। आज वह एक सफल डॉक्टर हैं और खुद को उन बच्चों के लिए समर्पित कर चुकी हैं जो जीवन में सहारा ढूंढते है
❤️ सेवा ही पहचान
डॉ. प्रिया अपनी आय का 70% हिस्सा देशभर के अनाथालयों को देती हैं। उनका मानना है कि –”जिन्हें दुनिया ने ठुकराया, उन्हें गले लगाना ही असली इंसानियत है।”
📌 निष्कर्ष
डॉ. प्रिया की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज को आइना दिखाती है कि लिंग पहचान किसी की काबिलियत को परिभाषित नहीं करती।Google पर यदि कोई “भारत की पहली किन्नर डॉक्टरनी” या “किन्नर समाज की प्रेरणादायक कहानी” सर्च करे, तो यह लेख निश्चित रूप से उपयोगी साबित होगा।
